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Sahil Kumar 2018
1. रोज साहिल से समंदर का नजारा न करो,
अपनी सूरत को शबो-रोज निहारा न करो,
आओ देखो मेरी नजरों में उतर कर खुद को,
आइना हूँ मैं तेरा मुझसे किनारा न करो।
2. कब तक वो मेरा होने से इंकार करेगा,
खुद टूट कर वो एक दिन मुझसे प्यार करेगा,
प्यार की आग में उसको इतना जला देंगे,
कि इजहार वो मुझसे सरे-बाजार करेगा।
इस लफ़्ज़े-मोहब्बत का इतना सा फसाना है,
सिमटे तो दिले-आशिक़ फैले तो ज़माना है,
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना तो समझ लीजे,
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है।
सिमटे तो दिले-आशिक़ फैले तो ज़माना है,
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना तो समझ लीजे,
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है।
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